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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


इसके कुछ दिन उपरान्त ही राज्य-सभा में यह घोषणा हो गयी कि राम का युवराज के रूप में अभिषेक किया जायेगा। यह समाचार भी सामान्य प्रजा में सबसे पहले प्रचारित हुआ।

मंथरा ने इस समाचार को अयोध्या नगर में हर्षोल्लास से कहा जाता सुना। इस समय तक उसके मन में अपनी सखी द्वारा डाला गया विषबीज पनप चुका था। अतः इस समाचार को सुनते ही वह अपनी रानी कैकेयी के सम्मुख उपस्थित हो बोली, ‘‘महारानी जी! कुछ सुना है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘राम का राज्याभिषेक हो रहा है।’’

‘‘सत्य?’’

‘‘तो आपको विदित नहीं?’’

‘‘कहाँ से सुन आयी हो इस शुभ समाचार को?’’

‘‘तो यह शुभ समाचार है?’’

‘‘तो यह नहीं है क्या?’’

‘‘महारानी जी! अयोध्या के कुँजरे-कबाड़ी भी इस समाचार की चर्चा कर रहे हैं और यहाँ राजप्रासाद में इसकी गंध तक नहीं है।’’

‘‘इसमें कुछ कारण रहा होगा।’’

‘‘क्या कारण हो सकता है?’’ मंथरा ने माथे पर त्योरी चढ़ा कर पूछा।

‘‘कोई राजनीति की बात रही होगी।’’

‘‘नहीं रानी जी! यह राजनीति की नहीं, वरन् यह राजप्रासाद में चल रही नीति की बात है। देखिये, आपको इस समाचार का ज्ञान नहीं और फिर यह कल ही हो रहा है। इस समय आपका पुत्र यहाँ नहीं है। वह ननिहाल में है। मुझे तो विश्वास है कि यह समाचार आपसे छुपा कर रखने के लिये प्रासाद में किसी को नहीं बताया गया।

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