लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


बात यह हुई थी कि राजा मन्त्री मण्डल की उन बैठकों में स्वयं उपस्थित नहीं होता था, जिनमें युवराज-पद के विषय पर विचार होता था। जब मन्त्री-परिषद इस बात पर सहमत हुई कि राम युवराज बने और उसे राज्य का कार्य-भार सौंपा जाये तो यह समाचार राजा से भी पहले प्रजा को मिल गया। राजप्रासाद में तो यह समाचार प्रजा के पास पहुँचने के उपरान्त पहुँचा।

मन्त्री-मण्डल जानता था कि राजा दशरथ राम के युवराज बनाये जाने से प्रसन्न होगा। इस कारण राज्य-परिषद् में निश्चय होते ही प्रजा में यह घोषणा कर दी गयी और प्रजागण राम के प्रति स्नेह तथा मान का भाव रखते हुए हर्षोल्लास में नाचने-गाने और कूदने लगे।

महाराज दशरथ को यह समाचार मिला तो वह सबसे पहले इसे अपनी सबसे प्रिय रानी कैकेयी को सुनाने के लिये पहुँचा। परन्तु कैकेयी के भवन की शोक-युक्त अवस्था देख वह स्तब्ध खड़ा रह गया। उसने एक दासी से पूछा, ‘‘यहाँ अन्धकार की अवस्था क्यों है?’’

दासी जानती हुई भी बता नहीं सकी। उसने कह दिया, ‘‘महाराज! मैं नहीं जानती। महारानी जी भीतर है।’’

राजा विस्मय-ग्रस्त भीतर के आगारों में पहुँचा तो वहाँ की अवस्था और भी बुरी देख वह लम्बे-लम्बे पग उठाता हुआ अन्तःपुर में जा पहुँचा और वहाँ भेंट करने के आगार में सर्वथा अन्धकार देख आवाज देने लगा, ‘‘महारानी! महारानी कैकेयी!!’’

उसके मन में भय समा गया था कि किसी प्रकार की दुर्घटना हो गयी है। महाराज के कई बार पुकारने पर एक धीमी-सी आवाज आयी, ‘‘भगवान् का धन्यवाद है कि आपको यहाँ आने के लिये अवकाश मिल गया है।’’

आवाज़ की दिशा में दशरथ गया तो अन्धेरे में उसका पाँव किसी से अटका और वह गिरते-गिरते बचा। यह कैकेयी थी।

‘‘अरे! तुम यहाँ किसलिये पड़ी हो?’’ दशरथ ने पूछ लिया।

‘‘मैं वहीं हूँ जहाँ आपने मुझे पटक दिया है।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book