उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘छः मास हुए मैं उसे लन्दन में मिला था। तब वह कहता था कि आपने उसे बाँह पकड़कर घर से निकाल दिया है। उसके उपरान्त मैं भारत लौट गया था। वहाँ से आये मुझे पाँच-छः दिन हुए हैं और इन दिनों में अत्यन्त व्यस्त था। मुझे उससे मिलने का अवसर नहीं मिला। वैसे उसका पता मेरे पास लिखा हुआ है।’’
सूसन को इस समय तक सामने बैठने का निमन्त्रण दिया जा चुका था। कुलवन्त घबरा रहा था वोपत के सामने अमृत का नाम न आ जाये। कहीं वह जान गया तो दिल्ली में उसके जीवित होने का समाचार पहुँच जायेगा और कई प्रकार की पेचीदगियाँ उत्पन्न हो जायेंगी।
इस कारण कुलवन्त ने पूछ लिया, ‘‘सिस्टर! पैरिस में कहाँ ठहरी हुई हैं?’’
‘‘मैं इसी होटल के रूम नम्बर थ्री-नाट-फोर में ठहरी हूँ।’’
‘‘अच्छा देखो, यह है मिस्टर वोपत। हमारे एयर मार्शल हैं। मैं आपके कमरे में आ पूर्ण इतिहास जानने की इच्छा करता हूँ। क्या रात के खाने के उपरान्त मैं आपसे नहीं मिल सकता?’’
सूसन वोपत’ के परिचय के उपरान्त सावधान हो गयी। वह समझ गयी कि अमृत सेना से भागा हुआ व्यक्ति घोषित हो सकता है। अतः वह बोली, ‘‘ठीक है। अब तो मैं भी एक काम से जा रही हूँ। मैं आपके मित्र की पूर्ण कथा आपको अपने कमरे में आराम से बैठ सुनाऊँगी।’’
‘‘चाय यहीं ले लें।’’
‘‘वह मैं ले चुकी हूँ। चाय लेते हुए ही मैंने आपको देखा था और आपसे बात करने का विचार बना बैठी थी।’’
जब सूसन गयी तो वोपत ने पूछ लिया, ‘‘यह बहन कैसे और कब बना ली है यहाँ?’’
‘‘यह एक लम्बा किस्सा है। कभी अवकाश के समय सुनाऊँगा। यह जन्म से अंग्रेज लड़की है, परन्तु अपनी माँ की सम्पत्ति पर रहती है। वह एक फ्रांसीसी स्त्री थी।’’
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