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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘तो तुम रात खाने के उपरान्त इसके कमरे में जाओगे?’’

‘‘हाँ। यह अपने पति के विषय में कुछ बताना चाहती है।’’

‘‘परन्तु पैरिस में एक युवती के कमरे में रात खाना खाने के उपरान्त जायें तो ठीक नहीं। इससे तो होटल में ‘स्कैण्डल’ बन सकता है।’’

‘‘ठीक है। परन्तु मैं एक हिन्दुस्तानी और हिन्दू हूँ। अतः जब किसी स्त्री को बहन मान लेता हूँ तो फिर वह बहन के अतिरिक्त अन्य कुछ बन नहीं सकती।’’

वोपत हँस पड़ा। हँसकर बोला, ‘‘पर वह मेरी तो बहन नहीं बनी। यदि मैं भी तुम्हारे साथ वहाँ चल सकूँ तो कैसा रहे?’’

‘‘यह तो उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। मेरे साथ तो वह अपने पति से झगड़े की बात करना चाहती है। इस समय तो नहीं। आगे-पीछे तुम उससे बात कर लो, परन्तु चार बच्चों के बाप होते हुए कैसे ऐसी बात विचार करने लगे हो?’’

‘‘मुझे वह मजेदार स्त्री समझ आयी है।’’

‘‘देखो मिस्टर वोपत! तुम उससे मेरी अनुपस्थिति में बातचीत कर लो। इतना बता दूँ कि यह लखपति है।’’

‘‘यह तो और भी ठीक है।’’

चाय के उपरान्त दोनों अपने कमरे में चले गये। कुलवन्त ने सब बिकाऊ जहाजों के विवरण-पत्र निकाले और अपने सामने रख, अपने सुरक्षा मन्त्री को पत्र लिखने लगा। पत्र लम्बा हो गया और लिखते-लिखते रात खाने का समय हो गया। पत्र लिखने में वोपत भी सहायता कर रहा था। पत्र समाप्त कर टाईप करके उन्होंने होटल के पोस्ट-वाक्स में डाल दिया। तदनन्तर वे खाना खाने ‘डायनिंग हाल’ में आये तो सूसन उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। इनके आने पर उसने कहा, ‘‘मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही थी।’’

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