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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘मैं देखना चाहूँगा। परन्तु पहले आपके बेबी के पिता से वैमनस्य की कहानी सुन लूँ, तब विचार करूँगा।’’

‘‘अब तो पैरिस से लियौन हवाई जहाज जाता है। यदि आप प्रातःकाल जायें तो दिन-भर वहाँ रहकर सांयकाल लौट सकते हैं।’’

‘‘परन्तु वहाँ तो मैं अपने मिस्टर वोपत के साथ ही जा सकता हूँ।’’

‘‘तो मैं इनको भी वहाँ आने का निमन्त्रण दे सकती हूँ।’’

‘‘अब बताओ, वोपत?’’

‘‘परन्तु हमने परसों लन्दन पहुँचना है।’’

‘‘कल का दिन यहाँ खाली है। यदि सिस्टर सूसन कल वहाँ चल सकें तो हम भी उनके साथ चल सकेंगे।’’

‘‘मैं को कल प्रातः के हवाई जहाज से जा रही हूँ।’’

‘‘क्यों, मिस्टर वोपत! क्या हम कल लियौन नहीं जा सकते?’’

‘‘मुझे तो सूसन का निमन्त्रण स्वीकार करते हुए बहुत प्रसन्नता होगी।’’

‘‘तब कल का कार्यक्रम निश्चय समझो। मैं अभी टेलीफोन कर आप दोनों के लिये सीटें रिजर्व करा देती हूँ।’’

पूर्व इसके कि खाना आये, वह होटल में एयर लाइन्स के रिज़र्वेशन क्लर्क से लियौन के लिये दो अन्य सीटों के लिये अपने पास से दाम में आयी।

वोपत ने सूसन के आने पर पूछा, ‘‘क्या दे आयी हो?’’

‘‘वह आपने नहीं देना। आप वापसी भाड़ा स्वयं देना।’’

खाना आया तो तीनों खाने लगे। खाने के समय इधर-उधर के विषयों पर वार्त्तालाप होता रहा।

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