उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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खाने के उपरान्त वोपत एक पिक्चर देखने चला गया था और कुलवन्त सूसन के साथ उसके कमरे में चला गया।
सूसन ने अपने अमृत से झगड़े की बात बता दी। उसने बताया, ‘‘यह लड़की जिसके साथ आपका मित्र रह रहा है एक दिन उसके साथ लियौन में आयी थी और हमारे घर में रही थी। उसी रात मैंने इनको अनिच्छित अवस्था में पाया। मैंने इनको इस व्यवहार पर कुछ डाँटा-फटकारा तो वह कहने लगे कि यह उसका ‘पर्सनल’ (निजी) मामला है। मुझे क्रोध आ गया और मैंने उसे बाँह से पकड़कर घर से बाहर निकाल कहा कि ‘आप अपने पर्सनल मामलों को घर से बाहर ले जायें।’
‘‘बस इतनी ही बात हुई है। अब आपके मित्र अपने व्यवहार पर पश्चात्ताप करने के स्थान उस लड़की से खुले-आम रहने लगे हैं। दोनों ने एक फ्लैट किराये पर लिया हुआ है और दोनों एयर लाइन्स में काम करते हैं और ‘मैन एण्ड वाइफ’ के रूप में रहते हैं।’’
‘‘तो अब तुम क्या चाहती हो?’’
‘‘वह मेरे बच्चे का पिता है और मैं उससे सुलह करना चाहती हूँ।’’
‘‘देखो सिस्टर! मैं समझता हूँ कि या तो तुम्हारे व्यवहार में किसी प्रकार का दोष रहा होगा अथवा इस देश की समाज का चलन ऐसा होगा जिससे कि उसे साहस हुआ है कि वह एक लड़की को लाकर अपनी पत्नी के पास रहने लगा था। मैं तो ऐसे व्यवहार को मनुष्य के सामान्य जीवन में अपवाद समझता हूँ। यह लज्जा-हीन बात कैसे उसके जीवन में आयी, कहना कठिन है। इस पर भी जिन कारणों से यह आई है, उन कारणों की जाँच-पड़ताल करने पर ही तो इसका इलाज ढूँढ़ा जा सकता है।’’
‘‘तो करिये। मैं इस जाँच-पड़ताल में आपको पूर्ण सहयोग दूँगी।’’
‘‘कठिनाई यह हैं कि मैं परसों लन्दन जा रहा हूँ और कह नहीं सकता कि कह पैरिस आ सकूँगा और कदाचित् आ ही न सकूँ।’’
‘‘ब्रदर! अपनी सिस्टर के लिये त्याग करें। कुछ दिन की छुट्टी ले लो।’’
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