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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘शिष्टाचार के नाते। जब आपने बताया कि वह आपके साथ है तो मैं इन्कार नहीं कर सकी। परन्तु यह यदि किसी प्रकार की मुझसे आशा करता है तो वह निराश होगा।’’

‘‘इसका मुझसे कोई सम्बन्ध नहीं। तुम जानो और वह जाने। मैं तो केवल यह कह रहा हूँ कि उसको अमृत का परिचय नहीं देना।

‘‘मुझे अमृत के रहस्य का भारत सरकार के ज्ञान में आना किसी शुभ का सूचक प्रतीत नहीं होता।’’

‘‘मैं सावधान रहूँगी।’’

जब वोपत पिक्चर देखकर साढ़े-ग्यारह बजे तक लौटा तो कुलवन्त गहरी नींद सो रहा था। इस पर भी उसे जागना पड़ा। वोपत ने द्वार खटखटाया तो कुलवन्त ने नाईट ड्रैस में बिस्तर से निकल द्वार खोला।

‘‘तो तुम आ गये हो?’’ वोपत ने पूछ लिया।

‘‘उससे तो बीस मिनट तक बातचीत हुई थी।’’

‘‘वह तुम्हारा कौन-सा मित्र है जिसके विषय में यह कह रही थी?’’

‘‘एक हिन्दुस्तानी मित्र है। वह यहाँ ही नौकरी करता है।’’

‘‘कहाँ का रहने वाला हूँ?’’

‘‘अपने ही राज्य का है। मेरा मतलब है कि हिमालच प्रदेश का।’’

‘‘मुझे यह स्त्री पसन्द आ गयी है। यदि कल तुम मुझे इसके साथ एकान्तवास का समय दो तो मैं तुम्हारा बहुत कृतज्ञ हूँगा।’’

‘‘देखो मित्र! समय देना तो साधारण-सी बात है, परन्तु मैं तुम्हें सचेत किये देता हूँ कि तुम्हें निराशा होगी। जहाँ तक मेरा ज्ञान है कि यह उस प्रकार की स्त्री नहीं है।’’

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