लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


चाय समाप्त हुई और दोनों मित्र हवाई पत्तन की ओर चले। सूसन ने अपनी गाड़ी निकाल ली और दोनों मित्रों को छोड़ने चल पड़ी। हवाई जहाज में सवार हो कुलवन्त ने पूछा, ‘‘सुनाओ, मित्र! कैसा बीता आज दोपहर का समय?’’

वोपत ने उत्तर देने से बचने के लिये टाल कर कह दिया, ‘‘सो-सो।’’

‘क्या मतलब?’’

‘‘तो तुम अंग्रेजी भाषा भूल गये हो क्या?’’

‘‘नहीं। मैं इसका अर्थ यह समझा हूँ कि तुम अपनी योजना में सफल नहीं हुए।’’

‘‘हाँ। यही कहना चाहिये।’’

कुलवन्त चुप रहा। अब वह अमृत से मिलने की योजना बनाने लगा। वह यह नहीं चाहता था कि वोपत के सामने भेंट हो। इसी कारण पैरिस में एक सप्ताह तक रहते हुए भी उसने अमृत से मिलने का यत्न नहीं किया था।

अब वह सूसन और अमृत में सुलह करा देना चाहता था। वह इसी कार्य के लिये योजना बना रहा था। वह चाहता था कि लन्दन पहुँचकर वह किसी बहाने से पैरिस अकेला लौटे और फिर सूसन से अमृत की सुलह कराने का यत्न करे। जब वे अपने होटल में पहुँचे तो वहाँ इनके लिये नयी दिल्ली से एक ‘डिस्पैच’ आया हुआ था।

उस पत्र को लेकर वे सीधे अपने कमरे में जा पहुँचे। और पढ़ने लगे कि उसमें क्या नयी बात है?

भारत से पत्र था कि वोपत लन्दन में जाकर वहाँ पर भारत के कमिश्नर के द्वारा बीस हवाई जहाजों का सौदा कर लिखें और इस सौदे को गुप्त रखने के लिये कुलवन्त पैरिस में टिका रहे और वह दूसरे जहाज़ बनाने वाली कम्पनियों से बातचीत जारी रखे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book