उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
कुलवन्त ने नयी दिल्ली से आये आदेश पर विस्मय प्रकट किया। उसने कहा, ‘‘वोपत! क्या समझे हो इसका अर्थ?’’
‘‘कुछ विशेष नहीं। यह हमारे सुरक्षा-मन्त्री की योजना प्रतीत होती है। मैं समझता हूँ कि इसमें कोई राजनीति चाल है।’’
‘‘मेरा अनुभव है कि इस प्रकार की बातें छुपी नहीं रह सकती।’’
वोपत ने कह दिया, ‘‘इस विषय में हमें चिन्ता करने की आवश्यकत नहीं। हमारा राजनीति से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं।’’
इस प्रकार बात समाप्त हो गयी। दोनों ने भोजन किया और सो गये। अगले दिन वोपत लन्दन चल दिया। उसके विदा होते ही कुलवन्त ने अमृत के घर का रास्ता पकड़ा।
यह शनिवार था। वह विचार कर रहा था कि वह अमृत को घर पर ही मिल सकेगा। कुलवन्त का विचार ठीक था। पहली रात बारह बजे के उपरान्त अमृत अपनी ड्यूटी से लौटा था। उसकी साथिन लुईसी क्रिस्टर तो सायंकाल छः बजे ही काम से लौट अमृत की प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों रात देर से सोने के कारण दस बजे तक सोये रहे थे।
अमृत का फ्लैट ढूँढने में कुलवन्त को सामान्य-सा ही कष्ट उठाना पड़ा। वह एक बड़ी-सी इमारत की तीसरी मंजिल पर एक फ्लैट में रहता था। द्वार बन्द था, परन्तु द्वार पर घण्टी बजाने का बटन लगा था। कुलवन्त ने बटन दबाया तो एक युवती ने द्वार खोला। कुलवन्त समझ गया कि वह अमृत की उन दिनों की साथिन है।
कुलवन्त ने पूछ लिया, ‘‘क्या मैं मिसेज़ अमृत से बातकर रहा हूँ?’’
‘‘हाँ! बताइये, क्या काम है?’’
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