उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं बैंगलोर में सैनिक हवाई जहाजों की वर्कशाप में फिटर के रूप में भरती हो गया। कुछ ही महीनों में मेरी योग्यता को देख मुझे जहाज उड़ाने का अभ्यास करने के लिये कहा गया। मैंने एक वर्ष में कोर्स पूरा किया और फिर एक एयर कमाण्डर की प्रेरणा से ‘ऐक्टिव सर्विस’ में चला आया।
‘‘आगे की कथा आप मेरी सर्विस फाइल में पढ़ चुके हैं। पाकिस्तान में भी मुझ पर एक लड़की ने मुग्ध होकर मेरी जान बचायी। कराची में सूसन ने मुझ पर मोहित होकर मुझे पाकिस्तान से बाहर किया और में सूसन की कैद से छुट्टी दिलवाने के लिये लुईसी मिल गयी है।’’
एकाएक कुलवन्त ने घड़ी में समय देखा। उस समय साढ़े-नौ बज रहे थे। कुलवन्त ने समय देख पूछ लिया, ‘‘परन्तु अमृत! वह लुईसी कहाँ है?’’
इस पर तो अमृत को भी चिन्ता लगने लगी। उसके फ्लैट पर टेलीफोन लगा था। उसने होटल के ‘पब्लिक कॉल बूथ’ से घर पर टेलीफोन किया। वहाँ किसी ने टेलीफोन उठाया नहीं। इससे निराश हो वह कुलवन्त के पास आ कहने लगा, ‘‘वह घर भी नहीं पहुँची। मैं समझता हूँ कि कहीं ‘ऐक्सीडेण्ट’ हो गया है।’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘समीप ही पुलिस चौकी में जाकर रिपोर्ट करता हूँ। वहाँ से पैरिस-भर की पुलिस चौकियों से टेलीफोन से सम्पर्क बना पता किया जायेगा।’’
‘‘तो चलो।’’
‘‘पहले भोजन कर लें।’’
‘‘नहीं अमृत! जब तक यह पता न चल जाये कि वह कहाँ है तब तक खाना खाया नहीं जा सकता। ‘ऐक्सीडेण्ट’ के विचार से तो मुझे भूख ही नहीं रही।’’
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