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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


दोनों मित्र होटल से निकल पैदल ही पुलिस चौकी में पहुँचे और जहाँ अमृत ने अपनी पत्नी का नाम लिखाकर रिपोर्ट लिखायी।

लिखने वाले क्लर्क ने पूछा, ‘‘जहाँ वह गयी थी उस स्थान से पता किया है कि वह वहाँ से चली भी है अथवा अभी वहाँ ही है?’’

‘‘नहीं।’’

क्लर्क ने पूछा, ‘‘वहाँ का टेलीफोन नम्बर बताइये?’’

अब अमृत ने जेब से अपनी ‘पॉकेट डायरी’ निकाली और पत्नी की सहेली का नम्बर बताया। क्लर्क ने उस नम्बर पर टेलीफोन किया तो वहाँ से लुईसी की सहेली का पति बोला। उसने बताया कि दोनों सखियाँ पिक्चर देखने गयी हुई हैं और रात के साढ़े-ग्यारह बजे लौटने के लिये कह गयी हैं।

क्लर्क ने वहाँ का सन्देश सुनाकर हँसते हुए कहा, ‘‘परमात्मा का धन्यवाद करो कि कहीं रात रहने के लिये नहीं चली गयीं।’’

अमृत झेंपता हुआ गरदन झुकाये थाने से बाहर निकल आया।

कुलवन्त ने कह दिया, ‘‘लड़का बगल में और डिडोरा नगर में, वाली बात हो गयी है।’’

अमृत हँस पड़ा। दोनों मित्र होटल में आये और भोजन करने लगे। भोजन करते हुए अमृत गम्भीर हुआ बैठा खाता रहा।

भोजननोपरान्त कुलवन्त ने पूछा, ‘‘अभी तो साढ़े-दस बजे हैं। वह साढ़े-ग्यारह बजे से पहले नहीं आयेगी। तब तक यहाँ ही रहो।’’

‘‘नहीं, अब मैं चलता हूँ।’’

इतना कह अमृत वहाँ से घर चला आया।

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