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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


राम के रथ को घेरे हुए अयोध्या के रहने वाले सहस्त्रों ही नर-नारी बाल-वृद्ध अपने घर-बार छोड़कर साथ-साथ चल पड़े। राम का रथ नगर और फिर नगर के बाहर गाँवों में से होकर निकला। उस रथ के साथ जाने वाली भीड़ बढ़ती गयी। तमसा नदी के तट तक पहुँचते हुए यह इतना बड़ा जन-समूह हो गया कि राम और रथ ले जाने वालों के लिये यह चिन्ता का विषय हो गया। सहस्त्रों नर-नारियों तथा बच्चों के खाने-पीने का तथा अन्य सुविधाओं का प्रबन्ध असम्भव हो गया। अतः राम ने सुमन्त्र को कहा और पुरवासियों को रात तमसा नदी के तट पर सोया छोड़ चोरी-चोरी वहाँ से चल दिये।

राम ने कुछ दूर जा सुमन्त्र को भी समझा-बुझा कर वापस कर दिया और तब तीनों राम, लक्ष्मण और सीता, नदी पार गये और वहाँ से गंगा को पार कर भारद्वाज के आश्रम में जा पहुँचे। भारद्वाज ने उन्हें चित्रकूट पर रहने की सम्मति दी और वहाँ का मार्ग बता दिया।

भारद्वाज के आश्रम से चलकर राम और लक्ष्मण ने स्वनिर्मित नौका से यमुना पार की और फिर चित्रकूट के वन में जा कुटिया बना रहने लगे।

‘‘भारद्वाज मुनि का आश्रम कहाँ था?’’ महिमा ने प्रश्न किया।

‘‘यह गंगा-यमुना के संगम स्थान पर था। दोनों महानदियों के बीच के उस स्थान पर जहाँ से दोनों नदियों का संगम दिखायी दे।’’

‘‘बाबा! इसे तो त्रिवेणी कहते हैं।’’

‘‘हाँ। यह किंवदन्ति है कि बहुत प्राचीन काल में, सम्भवतः सत् युग में, इस स्थान पर तीन नदियाँ मिलती थीं। गंगा-यमुना और सरस्वती। परन्तु किसी महान् भूकम्प के कारण सरस्वती और यमुना के बीच की भूमि ऊपर को उठ आयी और सरस्वती हिमालय से दक्षिण को आती हुई गंगा और यमुना के समान पूर्वाभिमुख नहीं रह सकी और तब यह पश्चिम को घूम गयी। पश्चिम में उस स्थान, जहाँ अब राजस्थान मरु-भूमि है, किसी समय सागर होता था। सरस्वती नदी उससे मिलने लगी।

‘‘तदनन्तर पृथिवी के भीतरी हलचल के कारण राजस्थान की भूमि ऊपर को उठ आयी और सागर का जल वहाँ से टलकर वर्त्तमान स्थान पर चला गया और सरस्वती भूमि के भीतर-भीतर पूर्वाभिमुख हो इस त्रिवेणी के स्थान पर यमुना-गंगा में आ मिलती है।’’

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