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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘इसका कहीं प्रमाण भी है अथवा यह केवल कहने में ही आता है।’’

‘‘इस बात का प्रमाण तो है कि सरस्वती नदी दक्षिण-पश्चिम को बहती हुई सागर में मिलती थी। परन्तु यह भूमि के भीतर-ही-भीतर जाकर प्रयाग राज में गंगा-यमुना से मिल जाती है, इसका प्रमाण नहीं है। यह गलत भी हो सकता है।

‘‘इसी कारण मैं इसे प्रयाग राज ही कहता हूँ। प्रयाग का अर्थ दो नदियों का संगम स्थान ही है।’’

‘‘बाबा! आप क्या समझते हैं कि राम को सौतेली माता का कहा मान राज्य त्याग कर चला जाना चाहिये था? उस समय तो रावण और राक्षसों से युद्ध की बात चल नहीं रही थी। न तो दशरथ के मन में राम के वन जाने से रावण से दूर का सम्बन्ध था और न ही कैकेयी के मन में।

‘‘राम के वन जाने के कर्म को तो रावण-युद्ध से प्रथक् कर देखना चाहिये कि क्या यह एक मिथ्या मनोद्गार नहीं था?’’

विष्णुशरण ने समझाया, ‘‘महिमा बेटी! कैकेयी, दशरथ, राम और लक्ष्मण के कार्य का मूल्यांकन राम-रावण युद्ध से पृथक् ही करना चाहिये।

‘‘जहाँ तक दशरथ और कैकेयी का प्रश्न है, दोनों ने एक सामान्य मनुष्य का-सा व्यवहार अपनाया था। उनके व्यवहार का मनौवैज्ञानिक विश्लेषण, कुछ अर्थ रखता है।

‘‘दशरथ समझ रहा था कि कुछ अनुचित हो रहा है, परन्तु वचन से बद्ध होने के कारण वह अपनी इच्छा ही प्रकट कर सकता था। कैकेयी के मन में यह भ्रम उत्पन्न हो गया था कि उसकी स्थिति और महिमा कम हो जायेगी। यह भ्रम सत्य था अथवा असत्य था, केवल यह कह देने से मिट नहीं सका कि राम एक श्रेष्ठ विचारों का युवक था और वह अपनी तीनों माताओं से सद्व्यवहार करेगा।

‘‘अतः कैकेयी के मन में यह भय उपस्थित हो गया था। कदाचित् यह बात कैकेयी के माता-पिता के और कुमारी कैकेयी के मन में विवाह के पूर्व रही होगी कि उसके घर में पुत्र होगा जो पहली दो रानियों के नहीं था। इससे वह पटरानी बन जायेगी और समय पाकर राजमाता होगी। यह भावना दशरथ के कैकेयी से विवाह के समय कैकेयी के माता-पिता के मन में होनी स्वाभाविक ही थी। उसी भावना का समय पर मंथरा से प्रोत्साहन पा उभर आना ही कारण हो सकता है।

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