उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘सुमन्त्र ने एक बार कैकेयी से कहा था कि वह इतनी कठोर माँग न करें, परन्तु कैकेयी ने उसे डाँट दिया था। यदि यही बात वशिष्ट कहता तो कदाचित् कैकेयी मान जाती और राम वन को न जाता। तब न राम-रावण युद्ध होता और न ही आज वह कोटि-कोटि भारत-वासियों के पूज्य होते।
‘‘दुर्घटना यह हुई कि दशरथ का देहान्त हो गया। कदाचित् वह भरत के लौटने तक जीवित रहता तो पुत्र की प्रेरणा पर कैकेयी अपना वचन वापस ले लेती और पिता वन में जाकर पुत्र को वापस ले आता।
‘‘पति के देहान्त पर कैकेयी को समझ आने लगा था कि उसने क्या भूल कर दी है? जब भरत ननिहाल से आया और पिता के संस्कार-कार्य कर चुका तो कैकेयी को विदित हुआ कि जिसके लिये उसने राम को वन भेजा है, वह राज्य लेना नहीं चाहता।
‘‘उसने अपने पुत्र के लिये राज्य माँगा था और इस माँग की प्रतिक्रिया-स्वरूप उसके पति का देहान्त हो गया। साथ ही भरत ने राज्य स्वीकार नहीं किया। उसने अपना राज्याभिषेक अस्वीकार कर दिया और अपना निश्चय माता को तथा पुरवासियों को बता दिया कि वह राम के पीछे-पीछे वन में जायेगा और उसे वापस लाये बिना नहीं लौटेगा।
‘‘कैकेयी पुत्र के इस विचार को सुन अपने कृत्य पर अति दुःखी हुई और भरत के साथ वन जाने के लिये तैयार हो गयी।
‘‘भरत जब राम को वन से लौटा लाने के लिये चला तो अयोध्या का पूर्ण मन्त्री-मण्डल, सहस्त्रों पुरवासी और एक बड़ी सेना साथ चल पड़ी। भरत के साथ उसकी तीनों मातायें, उसका छोटा भाई शत्रुघ्न भी गये। अन्तःपुर की अन्य स्त्रियाँ भी साथ हो लीं।
‘‘इस प्रकार एक विशाल जन-समूह राम को वापस लाने के लिये चल पड़ा। मार्ग में चलते हुए वे राम की यात्रा के चिह्न देखते जाते थे। तीनों का समाचार लेते हुए वे सब दल-बल सहित भारद्वाज के आश्रम में जा पहुँचे।
‘‘भारद्वाज ने राम के वहाँ आने और एक रात के लिये उस आश्रम में ठहरने का समाचार दिया। तदनन्तर यह बताया कि वहाँ से राम, सीता और लक्ष्मण तीनो चित्रकूट पर्वत को चले गये हैं।’’
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