उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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अमृत के अपने निवास-स्थान को चले जाने के उपरान्त कुलवन्त पैरिस के इण्टर कौन्टिनेण्टल होटल में अपने कमरे में चला गया। वह अमृत को सूसन अथवा महिमा के पास ले जाने में असफल हो निराशा से भर रहा था।
उसे अमृत का सम्बन्ध लुईसी से अरुचिकर और अकल्याणकारी लग रहा था। इस पर भी वह अमृत को समझा नहीं सका था कि वह वापस सूसन के पास चला जाये।
अपनी असफलता की निराशा में उसने अपने सरकारी काम पर ध्यान केन्द्रित करने का यत्न किया। इस पर भी वह चित्त लगा नहीं सका, अतः वह एक पुस्तक निकाल पढ़ने लगा।
जब उस पर भी चित्त नहीं लगा तो वह उठकर टेलीफोन लन्दन भारतीय कमिश्नर के कार्यालय से मिलाने लगा। तीन-चार बार यत्न करने पर टेलीफोन मिल गया। उसने अपना नाम व पता बता कर बिग्रेडियर वाई० वोपत के विषय में पूछा। वहाँ से उत्तर आया कि वह वहीं पर ही ठहरा है। कुलवन्त ने उसके लिये यह सन्देश दे दिया कि प्रातः सात बजे मुझे मेरे कमरे के नम्बर से टेलीफोन मिलाये। इसके उपरान्त वह टेलीफोन रख विचार कर रहा था कि अब सो जाये कि किसी ने उसके कमरे के द्वार की घण्टी बजायी। वह उठा और द्वार खोल देखने लगा। बाहर अमृत को देख वह विस्मित रह गया।
अमृत कमरे में घुस आया और धम्म से सोफा पर बैठते हुए बोला, ‘‘मैं आपके कमरे की खाली सीट पर रहने के लिये आ गया हूँ।’’
‘‘क्यों? अपने घर क्यों नहीं गये?’’
‘‘वहाँ कोई दूसरा किरायेदार आ गया है।’’
‘‘किरायेदार? क्या मतलब?’’
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