उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैंने उठकर उसे कहा, ‘यह जैण्टलमैन कह रहे हैं कि आपने विवाह कर लिया है? क्या यह ठीक है?’
‘इन्हें झूठ बोलने की आवश्यकता नहीं हो सकती।’
‘मैं यहाँ रात काटने आया था।’
‘मैं समझती हूँ कि तुम किसी होटल में चले जाओ। यहाँ तो दो ही व्यक्तियों के रहने का स्थान है।’
‘तो मैं अपना सामान ले जाऊँ?’
‘आपका क्या सामान है यहाँ?’
‘मेरा सूटकेस है, ब्रीफ केस है और कुछ अन्य सामान भी है।’
‘‘इस पर उसने कहा, ‘यह सब सामान आप कल प्रातःकाल आकर ले जायें तो ठीक है।’
‘मैंने कुछ विचार किया और कहा, ‘ठीक है। कल किस समय आऊँ?’
‘नौ बजे अल्पाहार के समय आइयेगा। आपका सब सामान यहाँ रखा होगा। मैं तो मिलूँगी नहीं। हम हनीमून के लिये प्रातः के हवाई जहाज से लन्दन जा रहे हैं। तुमकों सामान यहाँ एक अन्य स्त्री से मिल जायेगा।’
‘‘सो कुलवन्त! किसी होटल में जाने के स्थान यहाँ ही चला आया हूँ।’’
कुलवन्त खिलखिलाकर हँस पड़ा। हँसकर बोला, ‘‘तो अब सूसन के विषय में क्या विचार है?’’
‘‘मैं अभी अनिश्चित मन से हूँ।’’
‘‘इसमें निश्चय करने की कठिनाई क्या है? इस समय दो पत्नियाँ हैं जिनमें से तुमको एक चुन लेनी चाहिये।’’
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