उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘यदि महिमा यहाँ आ जाये तो?’’
‘‘तो सूसन ‘बाई गेमी’ के लिये दावा कर देगी।’’
कुलवन्त मुख देखता रह गया। कुछ विचार कर उसने कहा, ‘‘पर यहाँ कोई लुईसी जैसी अन्य भी तो मिल सकती है।’’
‘‘पर कुलवन्त! तुमने ही रात कहा था कि स्त्रियाँ मुझसे अब ऊबने लगी हैं।’’
‘‘क्या आयु है तुम्हारी?’’ कुलवन्त ने पूछ लिया।
‘‘अब उनतालीस-चालींस के लगभग है।’’
‘‘अभी चार-पाँच वर्ष और वर्त्तमान खानाबदोशों का जीवन व्यतीत कर सकोगे। उसमें भी कल रात जैसी घटना फिर भी हो सकती है।’’
‘‘मैं अब जीवन में स्थिर होना चाहता हूँ।’’
‘‘तो मैं सूसन को टेलीफोन कर देता हूँ।’’
‘‘क्या कहोगे?’’
‘‘यही कि मैं उसके पति के विषय में सफल हो रहा हूँ। उसे अपने बेबी के साथ तुरन्त आ जाना चाहिये।’’
‘‘हाँ, कर दो।
कुलवन्त ने कहा, ‘‘स्नानादि से अवकाश पा नीचे होटल में जाकर टेलीफोन करूँगा। उसे मैं इस कमरे से टेलीफोन करना नहीं चाहता।’’
कुलवन्त स्नानादि से अवकाश पा वस्त्र पहन रहा था कि लन्दन से टेलीफोन आया। यह वोपत का था। वोपत ने कहा, ‘‘मैं यहाँ का काम समाप्त कर चुका हूँ। और नयी दिल्ली सूचना रात भेज दी थी। मैं वहाँ से उत्तर आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।’’
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