लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


विवश अमृत ने दोनों नग उठाये और फ्लैट से बाहर चला आया। दोनों मकान से नीचे उतर आये और टैक्सी पर होटल इण्टर कौन्टिनेण्टल में जा पहुँचे।

वहाँ जा दोनों, सूटकेस और ब्रीफ केस को खोलकर देखा गया तो अमृत ने कहा, ‘‘परमात्मा को धन्यवाद है कि मेरे पहनने के कपड़े और कार्यालय के कागज ठीक हैं, परन्तु मैंने पिछले नौ महीने में कम-से-कम पाँच हजार फ्रेंक का और सामान मकान में रखा था। वह सब उसने अपने अधिकार में कर लिया है।’’

‘‘अमृत! परमात्मा का धन्यवाद करो कि उसने तुम पर से अपना अधिकार उठा लिया है।’’

‘‘ठीक है। फिर भी सूसन से तो अच्छा ही किया है। उसने तो मेरे वस्त्र भी वहाँ से लाने नहीं दिये थे। केवल बाँह पकड़ कर घर से निकाल दिया था।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि सूसन ने यह इसी कारण किया होगा कि वह तुम्हें पुनः घर लाने का यत्न चाहती होगी।’’

अमृत मुख देखता रह गया। दोनों ने होटल में प्रातः का अल्पाहार लिया और फिर घूमने चले गये। कुलवन्त अमृत के साथ ‘ट्यूलरीज’ देखने चला गया। वहाँ एक बहुत बड़ा अजायबघर था।

सायं साढ़े-सात बजे से पहले अमृत और कुलवन्त अपने कमरे में आ गये। कुलवन्त लन्दन से टेलीफोन की आशा कर रहा था। साथ ही आठ बजे तक सूसन के आने का समाचार था।

कुलवन्त ने एक डबल-सीटर कमरा पृथक, सूसन और अमृत के लिये सुरक्षित कर लिया। वह समझता था कि दोनों के रात इकट्ठे रहने से सुलह पक्की हो जायेगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book