उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘आना चाहिये था। मालूम नहीं क्यों नहीं आयी?’’
‘‘तो उसे बुला लाओ।’’
कुलवन्त उसे वहाँ लाना नहीं चाहता था। उसका विचार था कि अमृत उसके साथ है और कदाचित् वे किसी अन्य होटल में डिनर लेने चले गये होगें। इस कारण उसने कह दिया, ‘‘भूख लगेगी तो आ जायेगी।’’
‘‘उसके पति का क्या हुआ?’’
‘‘दोनों में सुलह कराने की योजना ही बना रहे थे।’’
‘‘द्वार भीतर से बन्द करके?’’ कहता-कहता वोपत हँस पड़ा।
कुलवन्त अब आश्वस्त था। इस कारण उसने पूछ लिया, ‘‘उस दिन लियौन में तुमसे कैसी बीती?’’
‘‘मैं उसे तैयार नहीं कर सका। उसने स्पष्ट कह दिया, कि यदि अपने को पुलिस के हवाले नही होना तो चुपचाप बैठे रहो। इतना कह वह अपने बेबी को लेकर अपने बैड-रूम में चली गयी थी और फिर चाय के समय ही बाहर आयी थी।’’
‘‘तो फिर तुम मेरे विषय में इस प्रकार के व्यंग किसलिये कर रहे हो?’’
‘‘बात यह है कि लियौन में तो वह बन्द द्वार के एक ओर रही थी और मैं द्वार के दूसरी ओर। परन्तु तुम दोनों बन्द द्वार के एक ओर ही बैठे थे।’’
‘‘इस पर भी ऐसी कोई बात नही थी जिसका तुम संकेत कर रहे हो। वह मेरी सिस्टर है और मैं उसका ब्रदर ही हूँ।’’
वोपत चुप कर गया। कुलवन्त ने कहा, ‘‘मैं तो यह ‘मिराज’ हवाई जहाजों के क्रय करने के पक्ष में नहीं हूँ। हमें लन्दन में ही और जहाजों के लिये यत्न करना चाहिये।’’
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