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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘हाँ। यदि एक ही प्रकार के जहाज हों तो काम-चालकों इत्यादि को बहुत सुविधा रहती है। साथ ही इनको पुर्जों के बदलने का भी सुभीता रहता है।’’

‘‘इस पर भी हमें यहाँ के भारतीय दूत से बातचीते करनी ही चाहिये। हमें तो आज्ञा पालन करनी है।’’

‘‘मेरा विचार है कि मेरा भेजा उपलब्ध हवाई जहाज़ों का विवरण पहुँच गया होगा और यदि किसी ने किसी प्रकार दो-तीन दिन की देर कर दी तो सम्भव है कि तब तक मेरे लिखे से कुछ समझ आ सकें।

इस प्रकार भोजन करते समय वे सरकारी काम की बात ही करते रहे। तदनन्तर वे अपने कमरे में जा सो गये।

अगले दिन कुलवन्त सूसन की प्रतीक्षा करता रहा। न तो वह उससे मिलने आयी और न ही प्रातः के समय खाने पर आयी।

भारतीय दूतावास में जाने से पूर्व कुलवन्त होटल के कार्यालय में गया और रूम नम्बर दो-चार-पाँच में रहने वाले के विषय में पूछने लगा कि उस कमरे में ठहरा व्यक्ति है अथवा कमरा छोड़ गया है?

उत्तर मिला कि वह तो प्रातः सात बजे ही चला गया था। कुलवन्त ने समझा कि अमृत ने अपने काम पर जाना होगा और सूसन लियौन चली गयी होगी। अतः उनकी बात मन में निकाल वे अपने काम पर चले गये।

उस दिन के उपरान्त दोनों अधिकारी इकट्ठे रहे। इस कारण अमृत और सूसन के विषय में बात नहीं चली। एक सप्ताह-भर पैरिस में रहकर वे अपने काम से अमेरिका गये और वहाँ से जापान होते हुए भारत लौटे।

कुलवन्त को न तो अमृत का कोई पत्र मिला और न ही कोई समाचार सूसन का। वह समझ रहा था कि दोनों में सुलह हो गया है और दोनों प्रसन्न हैं।

भारत में पहुँच उसने सूसन को एक पत्र लिखा। परन्तु उसका कोई उत्तर नहीं आया। कुलवन्त ने समझ लिया कि पति-पत्नी दोनों सुलह कर किसी विदेश में अपनी सुलह का जशन मना रहे हैं।

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