उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘परन्तु मैं जो पूछना चाहता हूँ वह यह है कि भारद्वाज मुनि के आतिथ्य का जो वर्णन बाल्मीकीय रामायण में है वह अनृत और अतिशय प्रतीत होता है।’’
‘‘हाँ। उसने लिखा है कि इस भोज में जो मुनि के आश्रम में राज-परिवार और अयोध्या की सेना तथा पुरवासियों को मिला, वह वर्त्तमान युग के वैष्णव हिन्दुओं की रुचि के अनुकूल नहीं। वहाँ लिखा है कि मुनिजी ने सैनिकों के स्वागत-सेवा और सुख-सुविधा के लिये मांस, मंदिरा, अप्सराओं द्वारा नृत्य-संगीत का भी प्रबन्ध किया था।
‘‘कुछ लोग मांस का अर्थ विशेष प्रकार के फल करते हैं। परन्तु सुरा और सुन्दरी के कुछ अन्य अर्थ न निकाल सकने के कारण कुछ लोग इस अंश को रामायण मे प्रक्षिप्त मानते हैं।
‘‘मैं तो इस झगड़े में पड़ता नहीं और कहता हूँ कि जो कुछ वहाँ लिखा है वह अयोध्यावासियों के आतिथ्य स्वागत के लिये अलंकार रूप में ही समझना चाहिये।
‘‘यदि मैं नयी दिल्ली में यह कथा सुनाऊँ और कहूँ कि मुनि भारद्वाज के आश्रम में अयोध्यावासियों को बहुत स्वादिष्ट भोज दिया गया तो वहाँ के लोग कल्पना करने लगेंगे कि चाय, कॉफी कोका कोला जैसे पेय पदार्थों का प्रबन्ध रहा होगा।
‘‘इसी प्रकार जिसने भी बाल्मीकीय रामायण में वर्णित सब पदार्थों को केवल श्रेष्ठ भोज्य वस्तु मात्र समझा होगा, वह लिखने वाला महर्षि बाल्मीकि है अथवा कोई अन्य है, नहीं कहा जा सकता।
‘‘अगले दिन भरत इत्यादि मुनिजी से चित्रकूट का मार्ग पूछने गये। भरत ने मुनिजी के आतिथ्य के विषय में धन्यवाद कर दिया। भरत ने कहा, ‘‘भगवन्! आपने तो अतिथि-सत्कार में राजाओं को भी मात कर दिया है।’’
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