लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


अतएव लक्ष्मण! मुझे तो किसी भी दशा में चित्त में चिन्ता अथवा भय नहीं। देखो, अयोध्या नरेश के आने की शान्ति से प्रतीक्षा करो।’’

लक्ष्मण भाई की युक्ति और मनोद्गार सुन चुप कर गया और आने वालों के वहाँ पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगा।

एकाएक वृक्षों के झुरमुट में से मुनि वशिष्ठ तथा अन्य मन्त्री-गण निकलते दिखायी दिये। उनके साथ भरत, शत्रुघ्न और माताओं को आते देखा तो-राम और लक्ष्मण आगे बढ़े और माताओं तथा गुरुजनों के चरण-स्पर्श कर भरत और शत्रुघ्न से गले मिले।

उनके पश्चात् सीता अपनी सासों के चरण-स्पर्श कर हाथ जोड़ सामने खड़ी हो गयी।

मातायें तथा भरत इत्यादि सब शिष्ट वर्ग राम को वल्कल पहने सामने खड़ा देख प्रेम और दुःख के आँसू बहाने लगे।

भरत नहीं जानता था कि किस प्रकार पिता के देहान्त का समाचार सुनाये। वह बात करने में कठिनाई अनुभव करता हुआ चुप था।

जब सब चुपचाप खड़े आँसू बहा रहे थे तब महर्षि आगे बढ़ राम की पीठ पर प्यार से हाथ फैरते हुए समाचार देने लगे, ‘‘राम! तुम्हारे पिता महाराज दशरथ तुम्हारे वन को चले आने के उपरान्त अति दुःख अनुभव करते हुए स्वर्ग सिधार गये हैं। भरत पिता के देहावसान का समाचार पाकर अयोध्या आया और उनका दाह-संस्कार तथा अन्त्येष्टि क्रिया कर अब राज्याभिषेक के लिये तुम्हें वापस अयोध्या ले जाने के लिये आया है।’’

इस शोक-समाचार से तो राम भी विह्नल हो रोने लगा। भरत और अन्य सब इस समाचार के उपरान्त मन्दाकिनी के किनारे पहुँच हाथ-मुख धो वहाँ ही नदी तट पर बैठकर विचार करने लगे।

बात भरत ने आरम्भ की। उसने कहा, ‘‘भैया! अयोध्या का सिंहासन सूना पड़ा है। अब तुम चलो और उसे सुशोभित करो।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book