उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘देखो, विलिंगटन हस्पताल से अभी-अभी एक टेलीफोन आया है कि कोई अमृतलाल जो आपके स्ववैड्रन में पायलट था, वहाँ अचेत पड़ा है। उसकी जेब में से मिले लायसेंस इत्यादि कागजात से पता चला है।
‘‘मुझे कार्यालय से पता चला है कि एक अमृतलाल पाकिस्तान से युद्ध मंउ मारा गया घोषित किया गया है। उसे मरणोपरान्त वीरचक्र प्रदान हो चुका है। वह तुम्हारे अधीन काम करता रहा है। तुम हस्पताल में चले जाओ और देखो कि यह कोई जालसाज़ है अथवा वही अमृतलाल पायलट है जो मर गया घोषित किया जा चुका है?’’
‘‘ओह!’’ कुलवन्तसिंह के मुख से निकल गया। उसने पूछ लिया, ‘‘किस नम्बर कमरे में हैं?’’
‘‘वहाँ आपत्कालीन वार्ड में है। वहाँ से पता कर लेना एयरोड्रोम से उसे आज प्रातः काल लाया गया है। वह सॉनफ्रांसिस्को से हवाई जहाज़ में सवार हुआ है और दिल्ली तक का उसके पास टिकट था।’’
कुलवन्त उठ खड़ा हुआ और अपना स्कूटर ले विलिंगटन हस्पताल जा पहुँचा। उसे विश्वास हो रहा था कि वह अमृतलाल ही है। कजाचित् पुनः सूसन से लड़कर आते हुए किसी कारण से अचेत हो गया है। उसे चिन्ता लग रही थी कि जाने वह किस प्रकार दिल्ली में पहुँच कर अपने जीवित बचने की सफाई देना चाहता था? वह मन में निश्चय कर चुका था कि वह अपना किसी प्रकार का भी सम्पर्क अमृत से हुआ था, नहीं बतायेगा।
विलिंगटन हस्पता के आपत-दुर्घटनाओं के वार्ड में वह गया। यहाँ पता करने पर उसका पुलिस कर्मचारियों से वास्ता पड़ा। एक हेड कांन्स्टेबल उसे एक कमरे में ले गया। जैसी कि वह आशा करता था, अमृतलाल एक खाट पर अचेत पड़ा था और उसके कपड़े उतार उसके शरीर का निरीक्षण किया जा रहा था। यह जानने का यत्न किया जा रहा था कि उसे कहीं चोट तो नहीं आयी।
इसके उपरान्त अमृत के कागज़ उसे दिखाये गये। कुलवन्त ने बयान दे दिया, ‘‘यह व्यक्ति मेरे अधीन कार्य करता रहा है। इसकी पत्नी यहाँ दिल्ली में रहती है। इसके विषय में यह सूचना थी कि यह भारत-पाक युद्घ में मारा जा चुका है।’’
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