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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


इस बयान पर कुलवन्त से बहुत प्रश्न पूछे गये। यह तो उसने बता दिया कि अमृतलाल की पत्नी कहाँ रहती हैं और क्या करती है? शेष प्रश्नों के उत्तर में वह अपनी अनभिज्ञता प्रकट करता रहा। इसके उपरान्त उसने डाक्टर से पूछा, ‘‘क्या इसे यहाँ स्पेशल वार्ड में रखेंगे अथवा मैं इसे सैनिक हस्पताल में ले जाने का यत्न करूँ?’’

डाक्टर इस विषय में निश्चयात्मक उत्तर नहीं दे सका। आखिर यही निश्चय हुआ कि अभी उसे वहाँ ही रखा जाये। पीछे निश्चय कर लिया जायेगा।

कुलवन्त ने कार्यालय में पहुँच सबसे पहले अपने घर पर गरिमा को टेलीफोन किया। उसे अमृत के अचेत मिल जाने का समाचार दे दिया। कुलवन्त ने गरिमा से कहा, ‘‘माताजी को समाचार दे दो। यदि वह पुत्र को देखने जाना चाहें तो हस्पताल में जा सकती है।’’

अगले दिन अमृत को सैनिक हस्पताल में भेज दिया गया। वह अभी भी अचेत था और डाक्टर जान नहीं सके कि वह क्यों अचेत हैं?

इसके एक सप्ताह उपरान्त सूसन का पत्र आया। उसमें उसने लिखा था, ‘‘भाई साहब! आपके कमरे में से निकलकर मैं रूम नम्बर दो-चार-पाँच में आपके मित्र की प्रतीक्षा करती रही। वैसे मैं आपके बाथ-रूम के पिछवाड़े के द्वार पर उसे वहाँ से निकाल कर ले जाने के लिए गयी थी। पिछला द्वार खुला था और आपके मित्र वहाँ, नहीं थे। उनका सूटकेस और ब्रीफ केस भी वहाँ नहीं था।

‘‘मेरे मन मे विचार आया कि वह अपनी ड्यूटी पर हवाई पत्तन पर चला गया होगा। बहुत प्रातः मैं वहाँ चली गयी थी। वहीं से मुझे लियौन वापस जाना था।

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