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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

5

अमृत आया। उसकी सैनिक जीप की आवाज नीचे सड़क पर सुनकर कुलवन्त मकान के नीचे उतर आया और अमृत को ऊपर की मंजिल पर ले गया। अमृत के मन में तो किसी प्रकार का संशय था ही नहीं। वह जानता था कि गरिमा और महिमा से मिलने आया है। परन्तु कुलवन्त तो उसे अभी भी कह रहा था कि वह उसे अपने ससुराल के गाँव का एक रहने वाला समझ चाय पर बुला रहा है। उसने सीढ़ियाँ चढ़ते हुए कहा, ‘‘दोपहर भोजन के लिये हम कैप्टन बोपत के यहाँ आमन्त्रित थे। जब मैं तीन बजे वहाँ से आने लगा तो कैप्टन साहब ने कहा कि सायंकाल चाय लेकर जाना। मैंने बताया कि मैंने आपको घर पर चाय के लिये बुलाया हुआ है। इस पर उसने पूछ लिया, ‘‘आपको ही क्यों? इस पर मैंने बताया कि, ‘आप मेरी ससुराल के नगर के रहने वाले हैं।’’

अमृत समझा कि उसका स्क्वाड्रन लीडर नहीं जानता कि गरिमा तथा उसकी बहन से क्या सम्बन्ध है उसका। अतः वह गरिमा आदि से पहचाने जाने पर उनके चकित रहने का मज़ा लेने की आशा कर रहा था।

इस समय तक वे ऊपर चढ़ ड्रायंग-रूम में पहुँचे तो अमृत माँ को वहाँ खड़ा देख विस्मित रह गया।

सुन्दरी ने पहचाना और उसे बैठक के द्वार पर खड़े देख कह दिया, ‘‘अमृत! वहाँ खड़े क्यों रह गये हों? आओ, इधर आओ।’’

अमृत को चेतना हुई तो वह आगे बढ़ माँ के चरण-स्पर्श करने के लिये झुका। माँ ने उसे उठा गले से लगा लिया। पीठ पर हाथ फेर प्यार दिया और फिर उसे सोफा पर बैठा, स्वयं उसके पास बैठ पूछने लगी, ‘‘कहाँ छुपें रहे हो तुम?’’

माँ की आँखें आँसुओं से भर गयी थीं। अमृत माँ को वहाँ देखने की आशा नहीं करता था। इस कारण वह इतना घबरा गया था कि वह माँ के प्रश्न को सुन नहीं सका। वह भूमि की ओर देखता हुआ मौन बैठा रहा।

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