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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


8

महर्षि विश्रवा को कैकसी अत्यन्त प्रिय और सुखकारक प्रतीत हुई। उसकी पहली पत्नी धनाध्यक्ष कुबेर की माँ रोहिणी थी। उसने एक सन्तान हो जाने के उपरान्त पुनः सन्तान की इच्छा नहीं की। उसने अपनी कुटिया ऋपि के आश्रम में ही, परन्तु ऋषि से पृथक बना रखी थी।

ऋषि कैकसी के साथ कई वर्ष तक सुखपूर्वक दाम्पत्य जीवन चलाता रहा। परिणामस्वरूप कैकसी के चार सन्तान हुई। पहली सन्तान एक पुत्र था। जब इसका जन्म हुआ तो उस समय रात का समय था। भयंकर आँधी, बिजली की कड़क और वर्षा हो रही थी। विद्युत् की गरज से वन-पशु भयभीत हो चीखते-चिल्लाते सुनायी दे रहे थे।

इस पर भी लड़का देखने में अति सुन्दर, शरीर से सुदृढ़ और बलवान और सतर्क था। कुछ ही दिनों में यह स्पष्ट हो गया कि लड़का मेधावी और संसार में प्रभुता-सम्पन्न होगा। उचित समय पर पिता ने इसकी बुद्धि की प्रखरता देख इसका नाम दशग्रीव रख दिया।

इस पर भृगदत्त ने बाबा विष्णुशरण से पूछ लिया, ‘‘बाबा! रामायण में तो लिखा है कि रावण की दस ग्रीवा थी?’’

‘‘मैं समझता हूँ कि यह अलंकार मात्र है। यदि रावण के दस सिर होते तो उसे सोने में, चलने-फिरने में और काम-काज में अत्यन्त कष्ट होता। कोई सामान्य व्यक्ति तो आत्म हत्या कर अपने को समाप्त कर लेता।

‘‘इस कारण दशग्रीव का अभिप्राय यही प्रतीत होता है कि उसकी बुद्धि दस मनुष्यों के बराबर थी।

लड़के के सुन्दर और बलवान होने से तो कैकसी प्रसन्न थी, परन्तु वह दो वर्ष की आयु में ही ऊधम मचाने लगा था। इससे उसकी प्रसन्नता में कमी आ गयी थी।

इस समय एक दूसरी सन्तान हो गयी। यह भी एक लड़का था, परन्तु इसका शरीर बेडौल था। वृहतराय, बड़े-बड़े कान और बोलने का शब्द घड़े में बोलने जैसा था। इससे कैकसी को और भी निराशा हुई।

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