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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘और देवी!’’ उसने अपने साथ आयी स्त्री को सम्बोधन करते हुए कहा, ‘‘यही जो ऊँचे आसन पर बैठी वेद-पाठ कर रही थी, मेरी पहली पत्नी रोहिणी हैं। यह विदुषी और सद्चरित्र हैं।’’

रोहिणी ने कैकसी से कहा, ‘‘बैठो भगिनी! यहाँ कोई किसी को शिक्षा नहीं देता। हम परस्पर विचार-विनिमय से ही सत्य की खोज में लीन रहती हैं। खोज का क्षेत्र है वेद भगवान्। हम यहाँ पाठ करती हैं। इसके अर्थ जानकर इसका भावार्थ अपनी बुद्धि से लगाती हैं। तदनन्तर हम परस्पर विचार करती हैं कि किसका भावार्थ ठीक है?’’

कैकसी उन स्त्रियों में बैठ गयी और ऋषि उसे वहाँ छोड़ अपनी कुटिया में चला गया।

वेद-पाठ पुनः चलने लगा। दो घड़ी-भर पाठ के उपरान्त वार्त्तालाप आरम्भ हुआ और पढ़े गये मन्त्रों पर विवेचना होने लगी।

इस प्रकार एक प्रहर व्यतीत हो गया। बातचीत अगले दिन के लिये स्थगित हो गयी और सब स्त्रियाँ उठ खड़ी हुईं। रोहिणी भी उठ आसन से नीचे आ गयी।

स्त्रियाँ परम्पर बातें करती हुई कुटिया से जाने लगीं तो कैकसी भी हाथ जोड़ रोहिणी को नमस्कार कर बाहर को घूमी तो रोहिणी ने उसे रोक कर कहा, ‘‘अभी ठहरो। तुमसे परिचय तो अभी हुआ ही नहीं।’’

कैकसी रोहिणी के समीप आ बैठ गयी। वह कहने लगी, ‘‘मुझे पता चला था कि एक बहन मुनिजी के पास रहने के लिये आश्रम में आयी है और उसे तीन सन्तान प्राप्त होने पर भी सन्तोष नहीं हुआ।’’

‘‘आपकी सूचना ठीक है। मुझे इस आश्रम में आये दस वर्ष हो चुके हैं। मैं यहाँ आने के विषय में कई बार विचार कर चुकी थी, परन्तु आते हुए संकोच अनुभव करती थी।’’

‘‘किसलिये?’’

‘‘मैं समझती थी कि आपको मुझ पर ईर्ष्या होनी चाहिये। मैं आपकी सम्पत्ति पर अधिकार जमाये बैठी थी।’’

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