उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
इस मीटिंग के उपरान्त दिल्ली विग के विंग-लीडर के अधीन एक बैठक हुई। दूसरे विग के लोग पृथक्-पृथक् कमरे में बैठ अपने-अपने प्रबन्ध के विषय में विचार करने लगे।
यह तो समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो रहा था कि पाकिस्तानी घुसपैठिये कश्मीर की पश्चिमी सीमा से कश्मीर में आ रहे हैं।
छम्ब के समीप सीमोल्लंघन करने वाले एक घुसपैठिये के पकड़ जाने पर वहाँ के पुलों के नक्शों और उनको उड़ा देने के लिये डिनामाईट उसके पास से मिला। उसके बकने पर पता चला था कि वह उसी क्षेत्र में बीस अन्य घुसपैठियों के सम्पर्क में रखा गया था और वे सब पाँच दिन उपरान्त अपने कार्य को एकाएक करने वाले थे। अखनूर का पुल इस आक्रमण का लक्ष्य था।
इस पर सीमा-क्षेत्र की सेना को सतर्क किया गया तो क्षेत्र में भी कुछ लोग संदिग्ध अवस्था में पकड़े गये। इनसे यह पता चला था कि बड़े स्तर पर आक्रमण किया जाने वाला था।
मीटिंग के उपरान्त कुलवन्तसिंह ने विंग-कमाण्डर से अपने घर में टेलीफोन लगवाने की माँग उपस्थित कर दी। अन्य स्कवाड्रन लीडर तो कन्टोनमैण्ट ऐरिया में रहते थे। उनके टेलीफोन लगे थे। कुलवन्त ने इसके लिये कभी माँग नहीं की थी। वह अभ्यास के दिन कार्यालय के एक कमरे में ही आकर सो जाया करता था। इस प्रकार इस आपद्-काल के समय वह टेलीफोन पर उपस्थित होना चाहता था।
विंग-कमाण्डर ने टेलीफोन अधिकारियों को कहा तो तुरन्त टेलीफोन लगवाने की आज्ञा मिल गयी और उस दिन कुलवन्तसिंह के घर पहुँचने में पूर्व टेलीफोन लगाने वाले कर्मचारी घर पर पहुँचे हुए थे।
उस दिन कुलवन्तसिंह सायंकाल बजे घर पहुँचा तो अमृत वहाँ महिमा और गरिमा तथा अपनी माताजी के साथ बातें कर रहा था।
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