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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘किसके पास दावा करूँ?’’

‘‘अपने पिता के पास। उसे कहना कि तुम छोटे हो। बड़ा भाई देवताओं की सहायता से एक नया नगर नगर बना सकेगा, परन्तु तुमको दैत्यों का रक्त होने से देवता न तो स्थान देंगे और न ही अन्य सहायता।’’

सुमाली दशग्रीव को पुनः उसके पिता के आश्रम में ले गया। दशग्रीव ने अपने पिता से जाकर कहा, पिताजी! मैं अब अपनी शिक्षा पूर्ण कर किसी राज्य का राजा बनने के योग्य हो गया हूँ। इस कारण बड़े भाई कुबेर को आप कह दें कि वह लंका का राज्य मुझे दे दे।’’

‘‘और वह क्या करे?’’

‘‘वह अति योग्य व्यक्ति है। सब देवता लोग उसके ऋणी हैं। इस कारण उसे नवीन नगर और राज्य के निर्माण में कष्ट नहीं होगा।’’

‘‘ऐसा करो।’’ विश्रवा ने कह दिया, ‘‘तुम कुबेर के पास चले जाओ और उसकी राज्य में सहायता करो। तुम अपनी योग्यता से अपने बड़े भाई से अधिक मान-प्रतिष्ठा पा जाओगे।’’

‘‘पर मैं तो अपना पृथक राज्य चाहता हूँ।’’

‘‘जो अपने भाई को अपने राज्य मे नहीं रहने देना चाहता, उसकी लोक में भूरि-भूरि निन्दा होगी।’’

‘‘पिताजी! मैं निन्दा से नहीं डरता। मैं तो यह कहता हूँ कि मेरा लंका के राज्य पर दोहरा दावा है। मैं कुबेर का भाई होने से, पितृपक्ष से लंका पर राज्य करने का अधिकार रखता हूँ। दूसरे, यह नगरी मेरे नाना के पिता और भाइयों ने निर्माण की थी और बसायी थी। इस कारण मातृ-पक्ष से भी मेरा इस राज्य पर अधिकार है।’’

‘‘परन्तु यह राज्य कुबेर को इन्द्र ने दिया है। मैंने नहीं दिया। इस कारण मैं उसको तुम्हें कैसे दे सकता हूँ?’’

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