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श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


संदीपन का शोक मिटाया,
उसका मोया पुत्र जिवाया।
चेदी राज महा अहंकारी,
शत से अधिक दीन जिस गारी।।7।।

अन्तकाल पापी फल पाया,
आपने उसका सीस उड़ाया।
मधु कैटभ से खल संहारे,
निज भक्तन के काज संवारे ।।8।।

जय सुर साधु विप्र हितकारी,
जय मधुसुदन जय बनवारी।
जय जय पुरुष पुराण अनन्ता,
जय लीलाधर जय भगवन्ता।।9।।

जय जय जय धनश्याम दयाला,
जय अविनाशी परम कृपाला।
जय सत चित आनन्द स्वरूपा,
जय जय जय भूपन के भूपा।।10।।

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