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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


अन्नाकाली ने पूछा- कैसी तबियत है? क्या हुआ?

ललिता ने कहा- सिर में दर्द है, जी मतला रहा है, तबियत बहुत ही खराब हो रही है।

इतना कहकर वह करवट बदलकर लेट रही। इसके बाद चारु ने आकर बड़ी खुशामद की, जोर-जबरदस्ती भी की, मामी से सिफारिश कराई, किन्तु किसी तरह ललिता को उठ कर चलने के लिए राजी न कर पायी। अन्नाकाली दस रुपये पा गई थी, इसलिए वह जाने को चटपटा रही थी। कहीं इस गड़बड़ मेँ पड़कर जाना न हो सके, इस भय से उसने चारु को आड़ में ले जाकर रुपये दिखाकर कहा- दीदी की तबियत अच्छी नहीं है, वे न जायँगी तो क्या हर्ज है चारु दीदी? उन्होंने मुझे रुपये दे दिये हैं- यह देखो। आओ, हम लोग चलें।

चारु ने समझ लिया, अन्नाकाली अवस्था में छोटी है तो क्या हुआ, बुद्धि उसमें किसी से कम नहीं है। वह राजी हो गई, और अन्नाकाली को लेकर चली गई।

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