लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व क्रोध को दबाते हुए कहा, “अवश्य ही आप ऐसी अनेक वस्तुएं देख लेती हैं, जिन्हें मैं नहीं देख पाता, स्वीकार करता हूं इसे। लेकिन कपड़ा निकालने की जरूरत नहीं है। संध्या आदि का झंझट कहीं नहीं गया। इस जन्म में जाएगा-ऐसा भी समझ में नहीं आता। लेकिन आपके दिए कपडे से इसके लिए सुविधा नहीं होगी। रहने दीजिए। कष्ट मत कीजिए।”

“पहले देखिए तो कि मैं क्या देती हूं।”

“मैं जानता हूं। टसर रेशम। लेकिन मुझे जरूरत नहीं। मत निकालिए।”

“संध्या नहीं करेंगे?”

“नहीं।”

“सोएंगे क्या पहनकर? कोट-पतलून पहनकर?”

“हां।”

“खाना भी नहीं खाइएगा?”

“नहीं।”

“सच?”

अपूर्व ने बिगड़कर कहा, “आप क्या खेल कर रही हैं?”

भारती उसके चेहरे की ओर देखकर बोली, “खेल तो आप ही कर रहे हैं, क्या आप में शक्ति है कि भोजन न करके, उपवास करके रह सकें?”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book