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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“और डॉक्टर साहब-जो मुझे बुलाकर लाए हैं? शायद वह अभी बिछौने पर ही पड़े हैं।”

“बिछौने पर लेटने का उन्हें समय ही नहीं मिला। अभी-अभी अस्पताल से आए हैं। सोने, न सोने किसी का भी उनके निकट कोई मूल्य नहीं है।”

अपूर्व ने पूछा? “इससे क्या वह बीमार नहीं पड़ते?”

“मैंने तो देखा नहीं। लगता है सुख-दु:ख दोनों ही उनसे हार मान कर भाग गए हैं। सामान्य मनुष्य के साथ उनकी तुलना नहीं की जा सकती।”

“उनके प्रति आप सब लोगों की अपार श्रद्धा है।”

“श्रद्धा है। श्रद्धा तो अनेक लोगों को अनेक चीजों पर होती है।” कहते-कहते उसका कंठ स्वर अचानक भारी हो उठा। बोली, “उनके जाते समय जी चाहता है कि रास्ते की धूल पर लेटी रहूं। वह छाती के ऊपर पैर रखकर चले जाएं। इच्छा होती है लेकिन आशा कभी पूरी नहीं होती अपूर्व बाबू!” यह कहकर उसने मुंह फेरकर झटपट आंखों के दोनों कोने पोंछ डाले।

अपूर्व ने कुछ नहीं पूछा। चुपचाप भोजन करने लगा। उसे बार-बार याद आने लगा कि सुमित्रा और भारती के समान इतनी पढ़ी-लिखी और बुद्धिमती नारियों के हृदय में जिस व्यक्ति ने इतनी ऊंचाई पर सिंहासन बना लिया है। भगवान ने उसे किस धातु का बनाकर इस संसार में भेजा है। उसके द्वारा वह कौन-सा असाधारण कार्य सम्पन्न कराएंगे?

ऑफिस के कपड़े पहनकर तैयार होकर उसने कहा, “चलिए, डॉक्टर साहब से भेंट कर आएं।”

“चलिए, उन्होंने आपको बुलाया भी है।”

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