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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


भूख न होने के कारण आज भारती ने रसोई बनाने की चेष्टा नहीं की।

दिन का जब तीसरा पहर बीत चला तब एक घोड़ागाड़ी आकर उसके दरवाजे पर खड़ी हो गई। भारती ने ऊपर की खिड़की से देखा तो आश्चर्य और आशंका से उसका हृदय भर उठा। गठरी-पोटरी आदि अपना सारा समान गाड़ी की छत पर लादकर शशि आ धमका था। पिछली रात के हंसी-मजाक को संसार में कोई भी मनुष्य ऐसी वास्तविकता में परिवर्तित कर सकता है शायद भारती इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

भारती नीचे उतरकर बोली, “यह क्या शशि बाबू?”

शशि बोला, “मकान छोड़कर आ रहा हूं।” फिर गाड़ीवान को आदेश दिया, “सामान ऊपर ले जाओ।”

भारती बोली, “ऊपर जगह कहां है शशि बाबू?”

शशि बोला, “बहुत अच्छा, तो नीचे के कमरे में रख दो।”

भारती बोली, “नीचे के कमरे में तो पाठशाला है।”

शशि चिंतित हो उठा।

भारती ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, “एक काम किया जाए शशि बाबू! होटल में डॉक्टर का कमरा खाली है। आप वहां अच्छी तरह रहेंगे। खाने-पीने का भी कष्ट नहीं होगा। चलिए।”

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