ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
मुंह से कोई शब्द नहीं, वाक्य नहीं - सभी मूर्ति के समान चुप बैठे रहे। सामने तार के वह सब काग़ज़ पड़े थे। मोमबत्ती जलकर समाप्त हो रही थी। शशि ने दूसरी मोमबत्ती जलाकर फर्श पर रख दी। दस मिनट इसी तरह बीत जाने के बाद पहले अय्यर के शरीर में चेतना के लक्षण दिखाई दिए। उसने अपनी जेब से सिगरेट निकालकर मोमबत्ती की लौ से सुलगाकर धुएं के साथ लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा, 'नाउ फिनिश्ड।
फिर बोला, वर्स्टलय.....वी मस्ट स्टाप।
शशि बोले, मैं जानता था.... कुछ नहीं होगा। केवल.....
डॉक्टर ने सुमित्रा की ओर देखकर पूछा, तुम बुध को जा रही हो?
सुमित्रा बोली, हां।
शशि बोले, इतनी बड़ी विश्वव्यापी शक्ति के विरुद्ध विप्लव की चेष्टा निष्फल ही नहीं पागलपन है। मैं तो हमेशा से यही कहता आ रहा हूं डॉक्टर।
अय्यर सिर हिलाकर बोला, ट्रू।
डॉक्टर सहसा सचेत होकर बोले, आज की हमारी सभा अब समाप्त होती है।
सभी उठ खड़े हुए। सभी ने अपनी-अपनी राय प्रकट की। केवल भारती चुप रही। वह चुपचाप डॉक्टर के पास आकर खड़ी हो गई। फिर उनका दायां हाथ खींचकर वह धीरे-धीरे बोली, भैया, मुझे बिना बताए कहीं चले तो नहीं जाओगे?
डॉक्टर चुप रहे। केवल अपनी वज्र जैसी कठोर मुट्ठी में जिस छोटे कोमल हाथ को पकड़ रखा था, उसी को दबाकर बाहर निकल पड़े।
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