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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


दूसरे दिन सवेरे ही आकाश में धीरे-धीरे बादल इकट्ठे हो रहे थे। रात को कुछ बूंदा-बांदी भी हुई थी। लेकिन आज दोपहर से वर्षा और हवा का वेग बढ़ गया था।

भारती के कमरे में बैठक हो रही थी। सुमित्रा आराम कुर्सी पर चादर ओढे लेटी हुई है। शशि खाट पर झुककर बैठा है। अपूर्व नीचे कम्बल बिछाकर लेटा है। उसी के जलपान की तैयारी में भारती फर्श पर बैठी फल काट रही है।

अपूर्व ने कहा है, संसार में अब उसकी रुचि नहीं है। अब उसके लिए संन्यास ले लेना ही एकमात्र श्रेयस्कर उपाय है। शशि इस प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं कर सका। वह युक्तिओं से खंडन करते हुए समझा रहा था कि ऐसी बात सोचना उचित नहीं है। क्योंकि संन्यास में अब कोई मजा नहीं रहा है। बल्कि बारीसाल कॉलेज में प्रोफेसरी के लिए जो आवेदन-पत्र भेजा है, अगर वह स्वीकृत हो जाए तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

अपूर्व दु:खी हुआ, लेकिन कुछ बोला नहीं। भारती सब कुछ जानती थी। इसलिए उसी ने उत्तर देते हुए कहा, जीवन में आनंद करते हुए घूमते रहने के अतिरिक्त क्या मनुष्य के लिए और कोई उद्देश्य नहीं हो सकता? शशि बाबू, संसार में सभी की आंखों की दृष्टि एक समान नहीं होती।

उसके बातचीत करने के ढंग से शशि उदास हो गया।

भारती ने फिर कहा, उनकी मानसिक स्थिति इस समय अच्छी नहीं है। इस समय उनके भविष्य के कर्त्तव्य पर सोच-विचार करना केवल निष्फल ही नहीं अनुचित भी है। बल्कि इससे तो यही अच्छा होगा कि हम लोग अपनी....!

मुझे इसकी याद न थी भारती।

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