ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
शशि ने कहा, भग्न दूत तुच्छ नहीं है भारती। वह न होता तो इतने बडे मेघनाथ-वध काव्य की रचना ही नहीं होती।
देखूं, यह किस काव्य की रचना करते हैं, यह कहकर भारती ने झांककर देखा। अपूर्व के नौकर के द्वार खोल देने पर जिस व्यक्ति ने प्रवेश किया वह सचमुच ही हीरा सिंह है। पलभर बाद उसने ऊपर आकर सबका अभिवादन किया और हाथ जोड़कर सव्यसाची को प्रणाम किया। वह वही सुपरिचित सरकारी वर्दी पहने हुए था। सरकारी चपरासी, सरकारी साफा, कमर में तार प्यून वाला चमड़े का बैग - यह सभी भीगकर भारी हो गए थे। उसकी भारी दाढ़ी-मुंछों से पानी झर रहा था। बाएं हाथ से उसे निचोड़कर, अपने को हल्का करके बोला, रेडी।
डॉक्टर बोले, थैंक्यू सरदार जी! कब आए?
जस्ट नाउ, कहकर एक बार फिर सबका अभिवादन करके नीचे जा ही रहा था कि एक साथ पूछ बैठे, क्या हुआ सरदार जी, जस्ट नाउ क्या?
लेकिन अपना कर्त्तव्य पालन करके हीरा सिंह चुपचाप बाहर चला गया। इन लोगों का कौतूहल मिटाने के लिए डॉक्टर ने जो कुछ कहा वह संक्षेप में इस प्रकार है-
हानि और अनिष्ट कितना हुआ है इससे इसका अनुमान लगा पाना कठिन है। शायद काफी हुआ है। लेकिन कितना ही क्यों न हो, दो काम उनको करने ही पड़ेंगे। उनके जैमेका क्लब का जो अंश सिंगापुर में है उसे बचाना ही पड़ेगा। और जहां भी हो, जिस प्रकार भी हो, ब्रजेन्द्र को खोज निकालना पड़ेगा। नदी के दक्षिण में सीरियम के पास एक चीनी जहाज़ माल लादकर अपने देश को जा रहा है। कल तड़के ही रवाना होगा। उसी में किसी प्रकार एक स्थान मिल गया है। हीरा सिंह यही समाचार दे गया है।
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