लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


यह सुनकर सुमित्रा का चेहरा फीका पड़ गया। सम्भव है ब्रजेन्द्र इस समय सिंगापुर में हो। और जो व्यक्ति उसका पता लगाने गया है उससे उसे परित्राण नहीं मिल सकता। उस समय विश्वासघात पर अंतिम विचार करने का समय आएगा। इसका दंड क्या होगा-यह बात दल के किसी भी व्यक्ति से छिपी नहीं है। सुमित्रा भी जानती है। ब्रजेन्द्र उसका कोई भी नहीं है और अगर उसने अपराध कर ही डाला है तो उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए। लेकिन जिस कारण से सुमित्रा ऐसी हो गई वह ब्रजेन्द्र के दंड की बात याद करके नहीं, बल्कि यह कि ब्रजेन्द्र कीड़ा-पतंगा नहीं है। यह आत्म-रक्षा करना जानता है। उसकी जेब में केवल पिस्तौल ही छिपी नहीं रहती, उसके समान धूर्त, युक्ति और उपाय से चलने वाला अत्यंत सावधान व्यक्ति इस संसार में कोई नहीं है। उससे भारी ग़लती यह हो गई कि वह जाने से पहले इस बात पर निश्चिंत रूप से विश्वास करके गया है कि डॉक्टर पैदल के रास्ते बर्मा छोड़कर चले गए हैं। अब किसी प्रकार अगर उसे डॉक्टर का पता मालूम हो गया तो उसके तूणीर में हत्या करने के जितने भी अस्त्र होंगे उनका प्रयोग करने में वह पलभर के लिए भी नहीं हिचकेगा।

हीरा सिंह के शांत और मृदु दो शब्द- 'नाउ' और 'रेडी' उन सबके कानों में हज़ार गुना भीषण होकर हजारों ओर से आघात-प्रतिघात करने लगे। भारती को लगा - हीरा सिंह मृत्यु दूत की तरह आकर एक पल में ही सब कुछ नष्ट करके चला गया।

शशि बोला, सब कुछ खाली-सा होता जा रहा है डॉक्टर।

बात सीधी-सी थी। लेकिन सभी की छाती पर उसने चोट की।

शशि बोला, हंसिए या चाहे जो भी कीजिए, यह बात सच्ची है। आप पास नहीं हैं, इसका ध्यान आते ही लगता है जैसे सब खाली हो गया। लेकिन मैं आपके आदेश के अनुसार ही चलूंगा।

जैसे?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book