ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
जैसे शराब नहीं पीऊंगा - राजनीति में नहीं पडूंगा - भारती के पास रहूंगा और कविताएं लिखूंगा।
डॉक्टर ने भारती की ओर एक बार देखा, लेकिन देख न सके। मजाक में पूछा,? किसानों के लिए कविता नहीं लिखोगे कवि?
शशि बोला, नहीं। अपनी कविता वह स्वयं लिख सकें तो लिखें। मैं नहीं लिखूंगा। आपकी इस बात पर मैंने बहुत विचार किया है और वह उपदेश भी कभी नहीं भूलूंगा कि आदर्श के लिए सर्वस्व न्यौछावर किया जा सकता है। केवल भद्र संतान, अशिक्षित कृषक यह नहीं कर सकते। मैं उन्हीं लोगों का कवि बनूंगा।
डॉक्टर बोले, वही बन जाना लेकिन यह अंतिम बात नहीं है कवि। मानव की गति यहीं पर निश्चल नहीं रह जाएगी। किसानों के दिन भी एक दिन लौटेंगे। तब उन्हीं लोगों के हाथों में राष्ट्र के कल्याण-अकल्याण का भार सौंप देना पड़ेगा।
शशि बोले, आ जाएं वह दिन। तब स्वछंद शांत चित्त से सारा उत्तरदायित्व उन्हीं के हाथों में सौंपकर हम लोग छुट्टी ले लेंगे। लेकिन आज नहीं। आज आत्म-बलिदान का भारी बोझ वह लोग ढो नहीं पाएंगे।
डॉक्टर उठकर आए और उसके कंधों पर दायां हाथ रखकर चुप खड़े हो गए।
इतनी देर तक अपूर्व चुपचाप बैठा सुन रहा था। इन लोगों की बातचीत में उसने एक भी बात नहीं कही थी। लेकिन शशि के अंतिम शब्द उसे बुरे लगे। जिन किसानों के हित के लिए उसने अपना जीवन समर्पित करने का निश्यच किया था उनके विरुद्ध यह सब बातें सुनकर क्षुब्ध और असन्तुष्ट हो उठा। और कहने लगा, शराब पीना बुरा है। बहुत अच्छा हो अगर यह उसे छोड़ दें। काव्य-चर्चा अच्छी है उसे ही करें। लेकिन कृषि-प्रधान भारतवर्ष का कृषक समुदाय इतना तुच्छ और इतनी अवहेलना की वस्तु है क्या? और वह लोग ही अगर खड़े न हो सके तो आपका विप्लव ही कौन करेगा? और करेगा भी क्यों? और पॉलिटिक्स? मैं ठीक ही कह रहा हूं डॉक्टर! किसानों के कल्याण के लिए मैं संन्यास व्रत धारण न करता तो आज स्वदेश की राजनीति ही मेरे जीवन का एक मात्र कर्त्तव्य हो जाता।
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