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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डॉक्टर थोड़ी देर तक उसके मुंह की ओर ताकते रहे। सहसा प्रसन्न हास्य से उनका चेहरा चमक उठा। बोले, तन और मन से प्रार्थना करता हूं कि तुम्हारा सदुद्देश्य सफल हो। राजनीतिक क्षेत्र भी उपेक्षा की वस्तु नहीं है। देश और दस आदमियों के कल्याण के लिए ही अगर तुमने वैराग्य ग्रहण किया है तो तुम्हारा किसी से विरोध नहीं होगा। लेकिन सभी लोग सभी कार्यों के योग्य नहीं होते।

अपूर्व ने स्वीकार करके कहा, मुझसे अधिक यह शिक्षा और किसे मिली है डॉक्टर? आप दया न करते तो बहुत दिन पहले ही इस भ्रम का चरम दंड मुझे मिल गया होता। यह कहकर पुरानी याद के आघात से ही उसके सारे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए।

शशि इस घटना को नहीं जानता था। उसे बताने की आवश्यकता भी किसी ने अनुभव नहीं की। अपूर्व की बात को उसने विचलित विनय और श्रद्धा-भक्ति के प्रदर्शन के अतिरिक्त और कुछ नहीं समझा। बोला, भ्रम तो बहुतेरे ही करते हैं लेकिन उनका दंड भोगा करती है अपनी जन्मभूमि। मैं सोचता हूं कि डॉक्टर कि आपसे अधिक योग्य व्यक्ति और कौन होगा? किसमें इतना ज्ञान है? जाति और देश कोई भी विषय हो। राजनीति की समझ किसे है इतनी? किसको इतनी व्यथा है? फिर भी यह किसी काम नहीं आया। चीन का आयोजन नष्ट हो गया। पेनांग तो चला ही गया। बर्मा का कुछ भी नहीं रहा। सिंगापुर का भी चला जाएगा - निश्चय ही है। सारांश यह है कि आपके इतने दिनों के सभी प्रयास नष्ट हो जाने वाले हैं। केवल प्राण ही शेष हैं वह किसी दिन चले जाएंगे। इसका ठिकाना नहीं।

डॉक्टर मुस्कराकर हंस पडे। शशि ने कहा, हंसिए या चाहे जो भी कीजिए। यह मैं दिव्य-दृष्टि से देख रहा हूं।

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