लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

12 पाठक हैं

भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


"अरी ! मुझे आँखें क्या दिखाती है? अरे क्या तू समझती है कि मैं तेरी इन आँखों से डरती हूं? सुन रहे हो? यह तुम्हारी लाड़ली बहू मुझे इस तरह दीदे फाड़े देख रही है जैसे मैं इसी का ही तो खाती हूँ। तुम्हें कहा था कि इसे मत बुलवाओ, मत बुलवाओ। इस महारानी का यहां निबाह न हो सकेगा। हाँ-हाँ बन्नो रानी, इसी का तो अहसान जताती हो कि जरा-सा काम जो करना पड़ता है। और काम ही कितना है? अरी बड़ी बहू कहाँ हो? सूरज इतना सर पर आ गया है तुम अब तक उठी नहीं हो। जल्दी नहा-धोकर आओ रसोई सँभालो। वरना सबको आज भूख हड़ताल करनी पड़ेगी (कहीं से बच्चे के रोने की आवाज) अरे यह मुन्ना क्यों रो रहा है? अभी तक इसे दूध नहीं पिलाया क्या? पिलाया भी कैसे होगा? यह महारानी जी गर्म करें तब तो.....राम राम.......राम राम........ राम राम..... कैसा समय आ गया है? सुबह से गई रात तक काम ही काम। देवर थे, जेठ थे, सास थी, ससुर थे, ननदें थीं, मगर मजाल थी कि किसी को शिकायत का मौका मिल जाये।

अरी, तुम तो लगीं मेरी बातें सुनने, इस तरह हाथ चला रही हो कि जैसे अभी मेंहदी लगी हो। गर्म-गर्म पूरियां जल्दी से तल लो। मैं नहा कर आई तुम नाश्ता लगाओ।"

(जाते हुए) "बडी़ बहू अब निकल भी आओ अपने कमरे सें, अपने मर्द को नाश्ता तो परोस दो, वरना वह भूखा ही चला जायेगा।"

सर झुकाये-झुकाये ही सुधा ने आंचल से अपने आंसू पोंछे। छिपी नजरों से आस-पास देखा। दिल में दर्द के स्त्रोत फूट निकले। जी चाह रहा था कहीं तन्हाई में जाकर खूब रोये। परन्तु कौन था उसका? किसको दिखाती अपने आंसू?

गीले बालों को संवारने का मौका भी अभी तक न मिला था। सुबह बहुत जल्दी उठना पड़ता था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book