ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
पता भी नहीं चलता और हाथ काम किए जा रहे हैं।
बर्तन साफ करने पर ही क्या। खाना बनाने बैठी तो तीसरा पहर गुजर गया।
सब के खा चुकने के बाद खुद खाने को कमी मन हुआ, कभी वह भी टाल दिया।
रसोई साफ की। अभी कमर सीधी करने का मौका ही नहीं आया होता कि रात के खाने की तैयारियां आरम्भ कर देती।
औऱ फिर कितनी रात बीत गई, कुछ भी पता नहीं होता। घर के सभी लोग अपने-अपने कमरों में जा कर बातें करने या बच्चों से खेलने या उनको पढ़ाने के बाद बत्तियाँ बन्द करके सो चुके होते, तब तक तो उसका काम खत्म ही नहीं हो पाता था।
चारों तरफ की आवाजे़ बन्द हो कर गहरी रात के सन्नाटों औऱ अँधेरों में बिलीन हो जातीं।
और मँझली जेठानी का मुन्ना, जो अब उसके आने के बाद कुछ ज्यादा ही रोने लगा था, औऱ जिसका रोना घर भर में कोई देख न सकता था औऱ उसे चुप कराने के बहाने जेठानी जी खूब नींद के मजे उठाती, एक तरफ की नींद कर चुकती तो वह कमर के गिर्द कसे आँचल की गिरह खोल कर भारी चाल से अपने वीरान कमरे की ओऱ आती।
जब दरबाजा खोलती तो अचानक ख्याल आता, 'वह बेवफा कहाँ होगा? कैसे होगा? जो इतनी यादें दे गया औऱ इतनी दारियाँ दे गया और इतने बन्धन दे गया।
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