ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
वह याद करके हंस पड़ती है। दिल ही दिल में हंस पड़ती। कभी किताबों में पढा़ करती थी। बड़ी वूढ़ियों से सुना करती थी कि नारी की उत्पत्ति इसीलिए हुई है कि वह स्वयं उत्पत्ति करे।
औऱ वही क्षण नारी के जीवन का सबसे बहुमूल्य क्षण होता है, जब वह उत्पत्ति के गर्व से मुस्कुराती है।
और उसके सीने से ममता के औऱ अमरित के स्त्रोत फूटते हैं और वह पूर्ण हो जाती है औऱ जीने का लक्ष्य पा जाती है।
हाँ, हाँ, वही जिसके विचार ही से दिल में गुदगुदी हो उठती थी और सारा शरीर एक हल्की सी कंपकपाहट से घन्टों एक मीठी सी आंच से सुलगा करता था।
आज उसी क्षण से उसे कितना डर लग रहा है। क्या होगा? कैसे होगा? उसके जीवन का मालिक दूर परदेश में एक नयें जीवन के लिए प्रयत्नशील है।
उसका पथ कठिन है। वह उसका सहारा चाहता है, उसका प्यार, अपनापन औऱ साथ चाहता है। घर के सभी लोग तो कहते हैं, जीवन भर वह प्यार के लिए तरसता रहा। कहीं से भी सच्चा प्यार उसे नहीं मिला और वह सदैव सभी पर अपना समस्त प्यार लुटाता रहा।
इतना बड़ा वो, इतनी छोटी ये। इतना महान वो औऱ इत्ती दुर्बल ये। जीवन में जिसने कभी किसी से कुछ नहीं चाहा, आज वह उससे वफा़ चाहता है, इन्तजार चाहता है, वचनों की पूर्ति की अभिलाषा करता है।
तो क्या वह उनके लिए इतना भी नहीं कर सकेगी?
नहीं-नहीं, वह चाहे पिस भी जाये। उनके रास्तों को औऱ मुश्किल नहीं बनायेगी।
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