ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
"बात क्या होनी है भाभी। तुम्हें फुर्सत मिले तो....”
"फुर्सत?" वह हंस पडी़, "फुर्सत में बैठ जाऊँ तो सारा घर भूखा मर जायेगा।"
“मर जाने दो घर भर को। क्या तुमने ही सबका ठेका ले रखा है? और सब लोगों के क्या हाथ पैर टूट गए है?"
वह घबरा उठी। कांपती आवाज में कहा, "न, न नन्दी ऐसा मत कहो। भगवान के लिए चुप रहो। इतना ऊँचा मत बोलो वरना एक तूफान खड़ा हो जायेगा।“
"चुप रहूँ। भाभी तुम बार-बार मुझे ही चुप रहने को कहती हो। मगर कोई इतना अन्याय देखकर चुप कैसे रह सकता है? क्या सब की आँखें फूट गई हैं कि तुम्हारी दशा किसी को नज़र नहीं आती? आज तो मुझे यह सब देख-देख कर रोना आ रहा है भाभी, रोना आ रहा है।“
"नन्दी।" उसने भर्राई आवाज में कहा, "तुम कालेज जाओ नन्दी बहुत देर हो गई है।“
"नहीं आज मुझे कालेज नहीं जाना है?”
"कालेज नहीं जाना है? यह क्यों?"
“बस यूँ ही, मेरा मन।"
“नहीं मन की बात नहीं मानी जाती। आदर्श और कर्तव्य मन की बातों से ऊँचे होते हैं। होते हैं न?”
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