ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
“नही भाभी कालेज नहीं जाऊंगा।"
“छुट्टी है क्या?"
“नहीं तो।"
“फिर तो कालेज जाना ही है। वरना जा़नते हो मां जी क्या कहेंगी? कहेंगी कि सुधा ने कालेज जाने से मना किया होगा। ऐसा क्यों कहती हो भाभी? ऐसा मत कहो। सचमुच आज मेरा मन अजीब सा हो रहा है। तुम्हारी हालत देखकर......”
"मेरी हालत?” वह हंस कर उसके करीब आ गई। धोती का पल्लू कंधों पर फैलाते हुए कहा, "मुझे क्या हुआ है? तुम इस तरह बेकार उदास न हो। अपने फर्ज़ को समझो, भावुकता कायरता होती है नन्दी।"
“भाभी।" वह चीख उठा। "तुम्हारा यह आदर्श ही मुझे अच्छा नहीं लगता। इतनी पढ़ी लिखी और महान होकर भी अपने आदर्शो के कारण इस तरह आटा दाल के चक्कर में जीवन को नष्ट कर रही हो। क्या यह कोई अच्छी बात है? कर्त्तव्य-कर्त्तव्य-कर्त्तव्य। बार बार तुम मुझे इसी तरह कर्त्तव्य याद दिला कर कायर बनाती हो। आज अगर भैया यहां होते....।"
“हां, तो क्या होता?" वह हँसने की कोशिश करने लगी। आंखों में चमक और हल्का सा व्यंग भर कर पूछा।"
“तो......तो तुम्हें वे यह सब न करने देते।“
"न ! न नन्दी तुम भूल गये। यह तो उन्हीं का आदेश है।“
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