ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
“क्या लक्षण किए हैं मैने?” उसने गुस्से से मुठ्टियां भींच लीं।
"एक हो तो बताऊँ। तुम समझते हो घर में सभी अन्धे रहते हैं? और यह, जिसे उसके पति ने छोड़ रखा है, अपनी जवानी संभाल नहीं पाती तो अपना जादू....।“
फिर न जाने क्या हुआ कि दुनियाँ घूम गई।
नन्दी ने भाभी के मुंह पर तमाँचा मार दिया।
घर भर की दीवारे हिल गई।
बड़े जेठ गई रात तक चिल्लाते रहे।
नन्दी बहुत देर तक रोता रहा।
चारों तरफ अजीब-अजीब कानाफूसियाँ होती रहीं।
वह बडी़ देर तक रसोई की चौखट पर बेहोश सी बैठी रही। जाने क्या हो गया था कि लगने लगा कि धरती से सारे सम्बन्ध टूट गये हैं।
लगने लगा था उसके कलेजे में किसी ने तेज़ छुरी घोंप दी है औऱ चारों तरफ सुर्ख लहू बिखरा है।
औऱ वह इस लहू, इस खून में डूब गई है।
और अस्तित्व के समस्त धारों ने अपनी आंखें बन्द कर ली हैं।
फिर न जाने कब, न जाने किस समय खून के उमड़ते धारों में से एक नन्हीं सी रोने की आवाज आई।
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