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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


शरीर में किसी जानदार शै ने धीरे-धीरे आंखें खोलीं। किसी ने आहिस्ता से कहा, "मां।“

उसके अस्तित्व के बन्द धारों ने एकबारगी ही हरकत की।

खून के धारे बाहर नहीं उसके अपने शरीर के अन्दर ही दौड़ रहे थे।

उन्हीं खून के धारों ने उसे मजबूर किया कि वह अपनी आंखें खोले।

औऱ उसने आंखें खोल कर अपने आस-पास देखा।

कितनी गहरी भयानक रात, कितना घना सन्नाटा।

हर तरफ मौत की सी स्तब्धता।

परन्तु नहीं इस स्तब्धता को चीरती हूई कुछ सिसकियों की आवाजें भी आ रहीं थीं।

नन्दी अभी तक रो रहा है?

नन्दी अभी तक रो रहा है?

नन्दी रो रहा है और वह उसे चुप भी कराने नहीं जा सकती है।

यह भी कैसी मजबूरी है।

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