लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पिया की गली

पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

12 पाठक हैं

भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


फिर बहुत दिन यूँ ही गुजर गये।

नन्दी अब रोज कालेज जाता है।

एक दो दिन तक तो नन्दी उससे आँखें चुराता रहा फिर आप ही आप सब कुछ पहले जैसा हो गया।

दोनों एक दूसरे के दुःख जानते हैं।

घर भर में वही दोनों एक दूसरे को समझ सकते हैं।

परन्तु दोनों मौन रहते हैं।

नन्दी बहुत उदास रहने लगा है।

बहुत कम किसी से बोलता है।

अधिकतर अपने कमरे में बन्द रहता हैं।

सब कुछ देखते हुए भी किसी से कुछ नहीं कहता।

एक मूक समझौते ने दोनों की ज़बानें बन्द कर रखी हैं। वह नन्दी के सामने वैसा ही वर्ताब करती है। वैसे ही अपने आप से लड़ती रहती है।

तब एक दिन माँ मे आकर कहा, "बहू नन्दी तो अब हाथ से बिल्कुल निकल चुका है। यह तुम जानती हो?”

उसने कोई उत्तर न दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book