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पिया की गली

कृष्ण गोपाल आबिद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :171
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9711

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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण


फिर कहने लगीं "सुधा बेटी, सुना है तुम बहुत पढ़ी-लिखी हो।तुम्हारे यहाँ ऐसा सब होता होगा। परन्तु हमारे यहाँ तो ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ था। उसी रोज तुमने सुना था बडी़ बहू ने क्या कहा तुम्हीं बताओ, आखिर वह तुम्हारी इतनी हिमायत क्यों करता है? तुम्हारा वह क्या लगता है? तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध है? तुम्हारे लिए उसने पढ़ना-लिखना, खाना-पीना क्यों छोड़ दिया है? बताओ.... बताओ..... ?"

“माँ।“

धरती का सीना फट गया।

"माँ।"

इतनी पीडा़, इतना दर्द इतनी करुणा से उसने कहा, "माँ।" परन्तु, माँ ने कुछ न सुना।

कहती चली गई "हर समय उसकी ज़बान पर तुम्हारा ही नाम क्यों रहता है? बताओ मेरे बेटे को तुमने मुझसे क्यों छीन लिया है? बताओ......ओ जादूगरनी.... तुमने कौन-सा जादू उस पर कर दिया है?”

माँ तो चली गई, मगर उसकी बातों की तलखी देर तक उसे घेरे रही।

और वह वहीं नंगी धरती पर लेटी बिलखती रही।

"ऐ धरती माँ...ऐ धरती माँ।"

वह जिसका इस दुनियां में कोई न था।

वह जो स्बयं इस धरती की तरह थी।

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