ई-पुस्तकें >> पिया की गली पिया की गलीकृष्ण गोपाल आबिद
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भारतीय समाज के परिवार के विभिन्न संस्कारों एवं जीवन में होने वाली घटनाओं का मार्मिक चित्रण
धरती की तरह विशाल।
औऱ धरती की तरह नरम दिल।
वह जो अपनी ममता हर एक पर लुटा बैठती थी।
आज इस खुरदरी धरती से लिपटी अपने आँसू औऱ औऱ अपनी आहें लुटा रही थी।
परन्तु धरती की गोद कितनी कठोर थी !
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धरती में चारों ओर दराड़े थीं।
जगह--जगह से चटख चुकी थी धरती –
फट चुकी थी धरती –
स्याह पड़ चुकी थी धरती-
दुःख के सायों ने और घने अंधेरों ने धरती का सीना चीर डाला था।
औऱ अब दूर-दूर तक कोई हरियाली न थी।
कोई बादल न था कि बरसता।
औऱ ऊपर धूप की तेज तपिश थी।
परन्तु आह ! यह क्या?
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